भोजन अपरिहार्य प्रक्रिया
बिना किसी प्रकार का आहार लिए जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता। भोजन करना जीवधारी की अपरिहार्य प्रक्रिया है। इसके बिना न शरीर ठहर सकता है और न जीवन सुरक्षित रह सकता है। इसके अभाव में फिर आत्मोन्नति को शरीर-साधन का मुख्य आधार ठीक उसी प्रकार माना गया, जिस प्रकार उसकी विकृति आत्मा की दुर्गति का कारण होती है। आध्यात्मिक उन्नति केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही निर्भर नहीं है; इसके लिए मानसिक तथा बौद्धिक स्वास्थ्य की भी नितांत आवश्यकता है। मानसिक अथवा बौद्धिक अथवा बौद्धिक स्वास्थ्य का संबंध भी भोजन से गहराई के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य की सारी छोटी-बड़ी क्रियाएँ, भले-बुरे कर्मों, सत्-असत् विचारों का उत्तेजन तथा संचालन बहुत कुछ भोजन के प्रकार पर निर्भर रहता है।
Life cannot be safe without taking any kind of diet. Eating is an essential process of living beings. Without it neither the body can stand nor life can survive. In the absence of this, then self-promotion was considered to be the main basis of the body's instrument, in the same way that its deformity is the cause of the degeneration of the soul. Spiritual progress is not dependent only on physical health; For this mental and intellectual health is also urgently needed. The relationship of mental or intellectual or intellectual health is also deeply related to food. All the small and big actions of a human being, good and bad deeds, stimulation and operation of good and untrue thoughts depend a lot on the type of food.
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सांस्कृतिक मूल्यों से दूर युवा पीढी आज युवा पीढी अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हो गई है। आए दिन नए-नए गुरुओं का डंका बज रहा है। आज अगर हम अपनी पीढी को भौतिकता की चकाचौंध में खोते हुए नहीं देखना चाहते, तो हमें महर्षि दयानन्द के बताए मार्ग पर चलना होगा। देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। अज्ञान, अन्याय और अभाव को दूर करने में हम असमर्थ रहे हैं। अज्ञान से लड़ने वाले...