परंपरा
अब न बँधुआ मजदुर रहे, न दास-दासी और न बेगारी। आज राजा-प्रजा की भी वह परंपरा नहीं रही, जिसमें कहना न मानने पर शूली पर चढ़ा दिया जाता था। आज की स्थिति में विचार-विमर्श, सद्भाव, शिष्टाचार ही वे माध्यम हैं, जिनके सहारे एकदूसरे के अधिक समीप आते हैं और शांतिपूर्वक वस्तुस्थिति समझकर अनुकूल-अनुरूप बन पाते हैं। बच्चों को इसी आधार पर ढाला, सँभाला एवं सुधारा जाता है। बड़ों के प्रति यही रीती-नीति अपेक्षाकृत अधिक सफल रही है।
Now there are no bonded labourers, no slaves and no forced labour. Today, even the king and the people have no longer had that tradition, in which they were crucified for disobeying. In today's situation, discussion, harmony, courtesy are the only mediums, with the help of which people come closer to each other and understand the situation peacefully and become compatible. Children are molded, handled and corrected on this basis. This custom and policy towards the elders has been relatively more successful.
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सांस्कृतिक मूल्यों से दूर युवा पीढी आज युवा पीढी अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हो गई है। आए दिन नए-नए गुरुओं का डंका बज रहा है। आज अगर हम अपनी पीढी को भौतिकता की चकाचौंध में खोते हुए नहीं देखना चाहते, तो हमें महर्षि दयानन्द के बताए मार्ग पर चलना होगा। देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। अज्ञान, अन्याय और अभाव को दूर करने में हम असमर्थ रहे हैं। अज्ञान से लड़ने वाले...