ममता और वात्सल्य
बच्चे बड़े हो गए, तो घर-परिवार की व्यवस्था उनके हाथ में सौंपकर माता-पिता ने वानप्रस्थ ले लिया और निकल पड़े समाजसेवा के लिए अथवा परिवार के उत्तरदायित्वों को इतना कम रखें कि उसके लिए अपना अधिकांश समय और श्रम न देना पड़े। आज की स्थिति में युवा लोकसेवियों को चाहिए कि वे संतान की संख्या न बढ़ाएँ। अच्छा तो यही है कि लोकसेवा के क्षेत्र में रहते हुए सन्तानोत्पादन से बचा जाए। संतान आखिर ममता और वात्सल्य भावना की अभिव्यक्ति के लिए ही तो आवश्यक समझी जाती है।
When the children grew up, the parents took Vanaprastha by handing over the arrangement of the family and went out to do social service or keep the responsibilities of the family so low that they do not have to spend much of their time and labor for it. In today's situation, young civil servants should not increase the number of children. It is better that while living in the field of public service, child production should be avoided. After all, children are considered necessary only for the expression of affection and affection.
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सांस्कृतिक मूल्यों से दूर युवा पीढी आज युवा पीढी अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हो गई है। आए दिन नए-नए गुरुओं का डंका बज रहा है। आज अगर हम अपनी पीढी को भौतिकता की चकाचौंध में खोते हुए नहीं देखना चाहते, तो हमें महर्षि दयानन्द के बताए मार्ग पर चलना होगा। देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। अज्ञान, अन्याय और अभाव को दूर करने में हम असमर्थ रहे हैं। अज्ञान से लड़ने वाले...