प्रकृति माँ है
माता प्रकृति हमारे शरीर, मन एवं भावों के विकास के लिए समग्र सुविधा जुटाती है और उसके आँचल में हम ही नहीं, सारे जीव अपने-अपने ढंग से पोषण पाते एवं विकसित होते हैं। प्रकृति यदि माँ न होती तो क्या वह अपनी इतनी सारी विविध एवं अनगिनत संतानो को संरक्षण, सुरक्षा दे पाती ? प्रकृति माँ है, इसलिए वह हमारी सभी नादानियों को क्षमा कर देती है, परंतु नादानियाँ जब अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करने लगती हैं तो प्रकृति माता उन्हें ठीक करने के लिए हमारा कान उमेठती है। आज हमने अपनी इस माता की सहनशीलता पर इतना अधिक कुठाराघात किया है कि उसका प्रतिकार किए बगैर कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हमारी इन उद्दंड एवं आत्मघाती क्रियाओं का परिणाम सामने है।
Mother Nature provides all facilities for the development of our body, mind and emotions and in her lap not only we but all living beings get nourished and develop in their own way. If nature had not been a mother, would she have been able to protect, protect and protect her so many diverse and innumerable children? Nature is mother, so she forgives all our naughtinesses, but when the naughty ones start crossing their limits, Mother Nature raises our ears to correct them. Today, we have attacked this mother's tolerance so much that there is no other option without retributing it. The result of these arrogant and suicidal actions of ours is in front.
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सांस्कृतिक मूल्यों से दूर युवा पीढी आज युवा पीढी अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हो गई है। आए दिन नए-नए गुरुओं का डंका बज रहा है। आज अगर हम अपनी पीढी को भौतिकता की चकाचौंध में खोते हुए नहीं देखना चाहते, तो हमें महर्षि दयानन्द के बताए मार्ग पर चलना होगा। देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। अज्ञान, अन्याय और अभाव को दूर करने में हम असमर्थ रहे हैं। अज्ञान से लड़ने वाले...