आनंद क्या है
सौंदर्यशाला की भाषा में इसे सौंदर्य कहा जाता है। आनंद मनुष्य के भीतर ही है और इसी को लोग भगवान मानते हैं। उसी में भगवान का स्वरूप दिखता है। वह आनंद है, परमात्मा तो केवल अनुभव करने वाली चीज है। मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं कि जो वस्तु आनंद नहीं दे सकती है, वह सुंदर नहीं हो सकती है। वह सत्य भी नहीं हो सकती। आनंद क्या है ? सत्य क्या है ? सुंदर क्या है ? इसका उत्तर है कि सुंदर वह है, जो शाश्वत है, नित्य है; ठीक उसी तरह, जिस तरह प्रेम अजर-अमर है। प्रेम के आधार पर हम स्वयं व दूसरों को सुधार सकते हैं।
In the language of beauty, it is called beauty. Happiness is within man and this is what people consider to be God. In him the form of God is seen. That is bliss, God is the only thing to be experienced. Munshi Premchand writes that a thing which cannot give pleasure cannot be beautiful. It can't even be true. What is pleasure? What is the truth ? what's beautiful ? The answer is that beautiful is that which is eternal, eternal; Just as love is immortal. On the basis of love we can improve ourselves and others.
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सांस्कृतिक मूल्यों से दूर युवा पीढी आज युवा पीढी अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हो गई है। आए दिन नए-नए गुरुओं का डंका बज रहा है। आज अगर हम अपनी पीढी को भौतिकता की चकाचौंध में खोते हुए नहीं देखना चाहते, तो हमें महर्षि दयानन्द के बताए मार्ग पर चलना होगा। देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। अज्ञान, अन्याय और अभाव को दूर करने में हम असमर्थ रहे हैं। अज्ञान से लड़ने वाले...